एक समय था जब कॉलेज में पढ़ना गर्व का एहसास कराता था। माता-पिता ही नहीं पड़ोसी भी गर्व महसूस करता था। आज की स्तिथि में इतना बदलाव आ गया है की गर्व महसूस करने की बात तो धरी की धरी रह गई है। आज स्नातक शिक्षा धारी, डिग्रीधारी इधर-उधर भटक रहा है उसे नौकरी के लिए कोई देना वाला तो जहा-तहा कोई पूछने वाला भी नहीं रहा हैं।
इससे लगने लगा है की अब डिग्री की कोई अहमियत नहीं रही हैं। आज के युवाओं का हौसला टूट रहा है और वो सोचते है की जब हमसे ज्यादा डिग्रीधारी की कोई अहमियत नहीं है तो हमें हमारी डिग्री का क्या इनाम मिलेगा। इसी वजह से आज की अधिकांश पीढ़ी पढ़ाई के प्रति दृढ़ नहीं हैं।
सन 2000 से पहले तक तो डिग्रियों की फिर भी पूछ और अहमियत थी लेकिन आज की स्तिथि बदलाव के उस चौराहे पर आकर खड़ी हो गई है की डिग्रियों के अर्थ की कमजोर पड़ गये है। कॉलेजों (महाविधालयों) में theoretical education का महत्त्व नगण्य हो गया हैं।
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तकनीकी शिक्षा और कंप्यूटर अनिवार्य हो गये है। स्तिथि यह हो रही है की जब तक व्यावसायिक शिक्षा पर आधारित कोई डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त न कर लिया जाए, तब तक नौकरी के दरवाजे खुलते ही नहीं हैं।
पहले की स्तिथि और अब की स्तिथि पूरी तरह से बदल गई है। अब केवल सैद्धान्तिक शिक्षा में डिग्री हासिल करना भी कोई मायने नहीं रखता हैं। मायने तो व्यावसायिक शिक्षा में पास डिग्री प्राप्त करना भी नहीं रखता। जमाना बदल चूका है।
आज की शिक्षा की दुनिया में आपकी डिग्री की अहमियत
जागरूकता इतनी आ गई है की उच्चतम और श्रेष्ठतम डिग्रीधारी ही नौकरी हासिल कर सकता है और अपने सपनों को साकार कर सकता है, वरना सामान्य डिग्री प्राप्त करना तो भटकाव के अलावा और कुछ नहीं हैं।
इसी कारण से छात्र-छात्रा की मानसिकता में ही नहीं संरक्षक की मानसिकता में भी एक बड़ा बदलाव आ गया है। शिक्षार्थी प्राइवेट ट्यूशन को बहुत अधिक महत्त्व देने लगे हैं। घर-घर में tuition center खुल गये है।
यह स्पर्धा शिक्षार्थी शिक्षक और शिक्षण संस्थान तीनों के लिए आवश्यक हो गई है। शिक्षार्थी श्रेष्ठतम अंक प्राप्त कर अपने आपको गौरवान्तित अनभव करता है। हमने पढ़ाया, हमारी शिक्षण संस्था में पढ़ा विज्ञापन का एक महत्त्वपूर्ण साधन बनता हैं। उससे भीड़ में वृद्धि होती है और धनार्जन का सहज मार्ग खुल जाता है।
कक्षा 10 और 12 (विज्ञान और वणिज्य वर्ग) में पढ़ने वाले शिक्षार्थी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए अच्छे-अच्छे विषयाध्यापकों का चयन सत्र के प्रारम्भ में ही कर लेते है। उनके लिए पढ़ाई मानो युद्ध का मैदान हो जाती है।
वे उसी मैदान में सालभर जमे ही नहीं अड़े भी रहते है। इससे संबंधित सारथी रूपी शिक्षक को फायदा ही फायदा होता है इसके आलवा शिक्षा के बदलते स्वरूप के परिपेक्ष्य की नजर से देखें तो कक्षा 12 उत्तीर्ण करने के बाद व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को पढ़ने के प्रति आज का शिक्षार्थी अधिक जागरूक हो गया हैं।
इसलिए ज्यादातर सैद्धान्तिक पाठ्यक्रमधारी महाविधालयों के आँगन कुछ सुने से दिखाई पढ़ने लगे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा था तो शिक्षा हम से और हम शिक्षा से दूर हो जायेंगे।
हद तो इस बात से सामने आती है की डिग्री पाने के लिए एक बच्चा अपना बचपन बर्बाद करके अच्छी डिग्री पाने के लिए जिंदगी दाव पे लगा देता है और फिर भी उसकी डिग्री की कोई अहमियत नहीं होती हैं।
इनमें से कुछ बच्चे तो ऐसे होते है जिनके माता-पिता के पास दो वक्त की रोटी के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था लेकिन फिर भी रात-दिन मेहनत करके अपने बच्चे की फ़ीस का खर्चा सभांला और फिर जिसकी आज कोई कीमत नहीं रह गई हैं।
जिससे पता चलता है की आज की शिक्षा की प्रकृति बदल गई है और आज पढ़ाई की कोई कीमत नहीं बची है और ना ही छात्र-छात्रा की डिग्री की कोई अहमियत रह गई हैं।
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Neeru Batra
Bahut Badiya Jamshed Ji.
Apke Article Padhne Ke Baad Kaafi Motivation Mila hai Mere Ko.