मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है

मेजर ध्यानचंद एक दिग्गज भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे। उनके समय में शायद ही कोई ऐसा होगा जो उनके खेल से प्रभावित नहीं हुआ। यहाँ तक की Dhyan Chand ने अपने खेल से खुद को हॉकी का जादूगर कहलवाया। लेकिन ऐसी क्या खास बात थी ध्यानचंद में और वे किस अंदाज में हॉकी खेलते थे जिससे उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा।

Dhyan Chand Hockey ka Jadugar

क्या आप जानते है कि, मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है? अपने पहले ही मैच में 3 गोल्स, ओलिंपिक मैचों में 35 गोल्स और अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में 400 गोल्स, ओवरआल 1000+ किए गये गोल्स का आँकड़ा मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहलाने के लिए काफी हैं।

इसके बावजूद आप मेजर ध्यानचंद को magician of hockey नहीं मानते हैं तो आज हम आपके साथ उनके करियर से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाएँ शेयर कर रहे हैं जिनसे आप जान जाओगे कि,  ध्यानचंद को हॉकी का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी क्यों कहा जाता है।

Major Dhyan Chand को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है ?

जब ध्यानचाँद हॉकी खेल रहे होते थे तो उनके हॉकी स्टिक से गेंद ऐसे चिपके रहता था जैसे उनका हॉकी स्टिक कोई चुंबकीय धातु हो। उनके खिलाफ खेल रहे खिलाड़ियों को भी अक्सर शक होता था कि, वे किसी स्पेशल स्टिक से खेल रहे है।

यहाँ तक कि, एक बार हॉलैंड में खेलते समय उनकी hockey stick में चुंबक होने की वजह से उनकी हॉकी स्टिक को तोड़कर भी देखा गया।

इतना ही नहीं, ध्यानचंद ने अपने अद्भुत खेल से जर्मनी के तानाशाह हिटलर से लेकर, दुनिया के महान क्रिकेटर don bradman तक को दीवाना बनाया।

एक दफा, 4 अगस्त 1936 में खेला गया ओलिंपिक फाइनल जिसमें भारत और जर्मनी आमने-सामने थे। यह मैच जर्मनी में खेला जा रहा था, पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था।

इस मैच के दौरान, जर्मनी का तानाशाह हिटलर भी अपनी टीम का हौसला बढ़ाने के लिए मौजूद था। मैच शुरू हुआ, पहले हाफ तक कड़ा मुकाबला हुआ और भारत 1-0 से बढ़त बनाने में कामयाब रहा था।

उसके बाद दुसरे हाफ के खेल से पहले जो हुआ, उसने सभी को चौंका दिया। कहा जाता है कि, जर्मनी के विशेषज्ञों ने पिच को जरूरत से ज्यादा गीला करावा दिया था।

इसलिए, ताकि सस्ते जूते पहने हुए भारतीय खिलाड़ियों को दौड़ने और गोल करने में परेशानी हो और वो मैच हार जाए। लेकिन ज्यादा गीली पिच को देखकर मेजर ध्यानचंद ने अपने जूते उतारे दिए।

अब वे अच्छी तरह दौड़ सकते थे। उसके बाद ध्यानचंद और उनकी टीम ने एक के बाद एक कूल सात गोल्स दाग दिए। इस तरह भारत ने यह मैच जीत लिया।

जर्मनी टीम की शर्मनाक हार को देखकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर खेल के बीच में ही मैदान छोड़कर चले गये। लेकिन हिटलर ध्यानचंद के अद्भुत खेल से प्रभावित हुए।

अगले ही दिन, हिटलर ने ध्यानचंद से मिलने के लिए उन्हें अपने ऑफिस बुलाया और उन्हें ऊपर से नीचे तक गौर से देखा। उस समय ध्यानचंद ने फटे हुए जूते पहने हुए थे।

हिटलर ने उनके जूतों की तरफ इशारा करते हुए उन्हें अच्छी नौकरी देने का लालच दिया और उनसे जर्मनी की टीम में खेलने के लिया कहा।

लेकिन इस सच्चे देशभक्त ने हमेशा भारत के लिए खेलना गौरव समझा और जर्मनी के तानाशाह हिटलर को साफ़ इंकार कर दिया।

भारत के अलावा, दुनिया के कई सार दिग्गजों ने ध्यानचंद के अद्भुत खेल का लोहा माना है।

यहाँ तक कि, दुनिया के सबसे महानतम क्रिकेटर्स में से एक, क्रिकेट के महानायक डॉन ब्रॅडमन ने ध्यानचंद के सम्मान में कहा कि, वे क्रिकेट के रनों की तरह गोल्स बनाते हैं।

ध्यानचंद ने अपने जुनून और कड़े अभ्यास के बल पर अपने आप को हॉकी का सबसे बड़ा खिलाड़ी बना लिया।

ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने के लिए भारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्मदिन, 29 अगस्त, राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।

यह दिन 1928, 1934 और 1936 में भारत के लिए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के जन्मदिन को दर्शाता है।

राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) भारत में 29 अगस्त को हर साल ध्यानचंद का सम्मान और सराहना की जाती है।

निष्कर्ष,

हमें उम्मीद है कि, अब आप भी जान गये होंगे की ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता हैं और वह आज भी दुनिया का सबसे दिग्गज और सर्वेश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी क्यों हैं।

यदि आप हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह के जीवन के बारे में अधिक जानना चाहते है तो नीचे वाले आर्टिकल में जाएँ।

यह भी पढ़ें:

  • मेजर ध्यानचंद की जीवनी – Major Dhyan Chand Biography in hindi

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