बैसाखी सिख धर्म के लोगों का एक त्यौहार है जिसे पुरे भारत में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार 13 या 14 अप्रैल के दिन मनाया जाता है। इस उत्सव का उत्साह पंजाब में सबसे अधिक पाया जाता है। बैसाखी का पर्व गर्मियों की पहली फसल या रबी फसलों की कटाई को चिह्नित करता है। India एक agricultural country है और इसकी अर्थव्यवस्था किसानों पर बहुत निर्भर करती है। Baisakhi किसानों के लिए एक त्यौहार है जिसे हम किसानों का त्यौहार भी कह सकते हैं।
बैसाखी हिन्दू और सिख समुदाय के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो भारत के अलावा दुनिया के कई अन्य हिस्सों जैसे, पाकिस्तान में भी मनाया जाता है, जहाँ सिखों के कुछ ऐतिहासिक स्थल स्थित हैं।
कनाडा में भी सिखों के एक बड़े समुदाय द्वारा बैसाखी का पर्व मनाया जाता है।
सिख लोग नगर कीर्तन में भाग लेने के लिए, बैसाखी मनाने के लिए बड़े उत्साह के साथ इकठ्ठा होते हैं। इस दिन सिख समुदाय के लोग स्थानीय लोगों को मुफ्त भोजन प्रदान करते हैं।
इसी दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ का गठन किया था। बैसाखी के दिन गुरुद्वारों को फूलों और रौशनी से भव्य रूप से सजाया जाता है।
बैसाखी का त्यौहार (Baisakhi 2024)
लोगों के बीच शांति और प्रेम फैलाने के लिए कीर्तन आयोजित किए जाते हैं। सिख लोगों के लिए यह त्यौहार भाईचारे का प्रतीक है।
बहुत से लोग इस दिन पवित्र स्नान करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और गुरुद्वारा जाते हैं, प्रार्थना करते हैं।
इस दिन गुरुद्वारों में लंगर चलाया जाता है और घरों में भी कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। बैसाखी के दिन मेले लगते हैं, इस दिन लोग पारंपरिक पंजाबी भटूरे, कड़ाई चिकन, लस्सी और कई तरह के स्वादिष्ट पंजाबी भोजन का आनंद लेते हैं।
रात में, समुदाय के लोग अलाव के पास भांगड़ा, गिद्दा या अन्य Punjabi folk dance करते हैं। ढ़ोल और नगाड़े इस त्यौहार को और आनंदित बनाते हैं।
बैसाखी का त्योहार सभी समुदायों के लोगों के साथ शांति, प्रेम, सद्भाव में रहने के लिए समर्पित है।
बैसाखी त्यौहार को वैसाखी के नाम से भी जाना जाता है। यह हर साल अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। हालाँकि, बैसाखी मुख्य रूप से हिन्दू और सिख समुदायों का त्यौहार है लेकिन इस्लाम धर्म के लोग भी इस उत्सव में शामिल होते हैं।
सिखों का नया साल
बैसाखी न केवल सिखों के नए साल को चिह्नित करने का त्योहार है बल्कि यह 1966 में गुरु गोविंद सिंह द्वारा आयोजित आखिरी खालसा का भी प्रतीक है।
पंजाब में सिखों का नया साल वैसाखी के रूप में मनाया जाता है।
बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ, गुरु को अर्पित करने के बाद भक्तों के बीच कराह प्रसाद और लंगर का वितरण किया जाता है।
बैसाखी मेला
मनोरंजन के लिए बैसाखी पर मेले लगाए जाते है। पंजाबी ढ़ोल के साथ भांगड़ा और गिद्दा नृत्य बैसाखी उत्सव के आकर्षण का हिस्सा होते हैं।
1699 के वर्ष में गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ का गठन, बैसाखी मनाकर मनाया जाता है।
यह खुशी का त्योहार है जो लोगों को एक साथ लाता है और सद्भाव में बांधता है।
बैसाखी पंजाबी नव वर्ष का प्रतीक है, जहाँ किसान मौसम की पहली रवि फसल की कटाई करते हैं। बैसाखी मेले स्थानीय लोगों को त्यौहार का आनंद लेने में मदद करने के लिए आयोजित किए जाते हैं।
बैसाखी त्योहार एक मौसमी त्योहार है। यह विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में सभी वर्गों के लोगों द्वारा मनाया जाता है।
यह फसल के मौसम के आगमन को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है।
सिख इस त्योहार को खास तरीके से मनाते हैं। वे गुरुद्वारों में जाते हैं, पवित्र ग्रन्थ पढ़ते हैं और महान गुरुओं की शिक्षाओं का स्मरण करते हैं।
बैसाखी त्यौहार का महत्व (Importance of Baisakhi Festival)
सिख समुदाय के लोग बैसाखी त्योहार को बहुत मज़ेदार और मनमोहक तरीके से मनाते हैं। यह त्योहार सिखों के लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि यह त्योहार खालसा की स्थापना का प्रतीक है।
बैसाखी त्योहार हिंदुओं के लिए समान महत्व रखता है क्योंकि इस दिन स्वामी दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना की थी। यह दिन खालसा पंथ के जन्म का प्रतीक है।
इस दिन, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की नींव रखी।
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