चांद पर इंसान के उतरने का दावा: इसके बारे में लोगों की 2 राय हैं, कुछ लोग कहते हैं कि यह सच है तो कुछ लोग कहते हैं कि यह झूठ है और अभी तक चांद पर किसी भी इंसान ने कदम नहीं रखा है। इस आर्टिकल में आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे कि वाकई चांद पर इंसान उतरा था या नहीं? क्या सच है और क्या झूठ, जिससे आप समझ सकोगे कि चांद पर कोई आदमी उतरा था या नहीं।
1969 में जब चांद पर लैंडिंग करने का प्रसारण हुआ, तो इसे लाखों लोगों ने देखा था, लेकिन फिर भी कुछ लोगों का मानना है कि अभी तक चांद पर किसी इंसान ने कदम नहीं रखा है।
यहां तक कि अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में ही ऐसे 5% लोग हैं जो चांद पर लैंडिंग को झूठ मानते हैं।
हालांकि ऐसा मानने वालों की संख्या कम है, लेकिन ऐसी अफवाहें उड़ने में समय नहीं लगता और आज भी पूरी दुनिया में ये बात फैल गई है।
इसीलिए, आज मैं आप सभी को इसके बारे में एक्सप्लेन करके बताऊंगा कि यह बात झूठ है या सच।
चांद पर इंसान के पहली बार कदम रखने की पूरी कहानी
20 जुलाई 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर पहली बार कदम रखा था। वो moon पर उतरने वाले पहले इंसान थे।
नील, नासा के सबसे काबिल अंतरिक्ष यात्रियों में से एक थे, 20 जुलाई को जब उनका अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ रहा था तो इस मिशन से जुड़े हजारे लोगों की धड़कनें तेज थी।
मिशन की कामयाबी और हालात को संभालने की जिम्मेदारी नील पर थी, नील के सामने उबड़ खाबड़ चांद की सतह थी और उनके यान में ईंधन भी कम था।
लेकिन नील ने अपने हौसले से बड़ी आसानी से यान को चंद्रमा पर उतार लिया, ये मानवता के लिए एक बहुत बड़ी छलांग थी। और फिर 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखकर इतिहास रच दिया।
चांद पर उतरने वाला लूनर लैंडर 2 लोगों को लेकर गया था, जिसमें नील आर्मस्ट्रांग के अलावा बज एल्ड्रिन भी मौजूद थे। नील के बाद उन्होंने ही चांद पर कदम रखा।
उसके बाद पांच और अमेरिकी अभियान चांद पर भेजे गए। साल 1972 में चांद पर जाने वाले यूजीन सेरनन आखरी अंतरिक्ष यात्री थे। उनके बाद अब तक कोई भी इंसान चाँद पर नहीं गया है।
इस साल इंसान के चांद पर पहली बार कदम रखने के 50 साल पूरे हो गए हैं। अब आधी सदी के बाद अमेरिका ने ऐलान किया है कि वह चांद पर फिर से इंसान मिशन भेजेगा।
राष्ट्रपति ट्रंप ने इससे जुड़े मिशन के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि अमेरिका या किसी और देश में आधी सदी तक चांद पर किसी अंतरिक्ष यात्री को क्यों नहीं भेजा?
ऐसी ही कुछ धारणाओं की वजह से लोग मानते हैं कि हकीकत में अमेरिका ने कभी चांद पर किसी व्यक्ति को भेजा ही नहीं।
दरअसल, लोग यूं ही ऐसा नहीं कहते हैं इसकी कुछ वजह भी है जो निम्न प्रकार है।
चांद पर इंसान के उतरने का दावा झूठा था?
चांद पर इंसान के उतरने वाली बात को ना मानने के पीछे लोगों का तर्क है कि 1960 के दशक में जब अमेरिका अपने अंतरिक्ष तकनीक की कार्यक्रम की वजह से चंद्र मिशन से छूट गया था।
तो यूएसएसआर के खिलाफ अंतरिक्ष की दौड़ में शामिल होने और अपने आप को बड़ा दिखाने के लिए नासा ने चंद्रमा पर उतरने का नाटक किया था।
अपोलो 11 के वापस आने के बाद से ही इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाने की कहानियां शुरू हो गई थी, जब नील आर्मस्ट्रांग ने कहा था कि,
“मानव के लिए ये छोटा कदम है, मानवजाति के लिए एक बड़ी छलांग।“
लेकिन इन अफवाहों और कहानियों को हवा तब मिली जब 1976 में एक किताब प्रकाशित हुई, जिसका नाम था “We never went to the moon: America’s Thirty Billion Dollar Swindle”
यह किताब पत्रकार बिल केसिंग ने लिखी थी जो नासा के जनसंपर्क विभाग में काम कर चुके थे। इस किताब में कई ऐसी बातों और तर्कों का उल्लेख किया गया है, जिनसे लगता है कि चांद पर इंसान के उतरने का दावा झूठा था।
किताब में बताए गए कुछ तर्क इस प्रकार है।
1. बिना हवा के चांद पर लहराता झंडा:
किताब में एक तस्वीर को दर्शाया गया है और बताया गया है कि चांद की सतह पर अमेरिकी झंडा लहराता हुआ दिख रहा है। जबकि चांद पर हवा होती ही नहीं है तो यह झंडा वायुहीन वातावरण में कैसे लहरा सकता है?
नासा का कहना है कि फ्लैग की डंडी L टाइप की थी और चांद पर गुरुत्वाकर्षण धरती से 4 गुना कम होता है इसलिए फ्लैग लहरा रहा था।
2. बिना तारों का आकाश:
चांद पर इंसानी यान लैंडिंग को झूट मानने वाले लोगों का एक और तर्क है कि तस्वीरों में बिना तारों का आकाश दिख रहा है, जबकि आसमान में लाखों करोड़ों तारे हैं जो चांद से भी दिखाई देते होंगे।
नासा का कहना है कि ऐसा इसलिए है कि चंद्रमा सूरज की रोशनी को दर्शाती है जिससे चांद की चीजें चमकती हुई दिखाई देती है, यह आसमान के सितारों की रोशनी को कम कर देती हैं।
3. पैरों के नकली निशान:
चंद्रमा पर दिखे पैरों के निशानों को भी लोग नकली मानते हैं और कहते हैं कि चंद्रमा की सतह पर नमी की वजह से इस तरह के निशान नहीं पढ़ सकते, जिस तरह की तस्वीर में दिखाए गए।
एरीजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क रॉबिंसन का कहना है कि चंद्रमा मिट्टी की चट्टानों और धूल के कणों से ढका हुआ है, जिससे उसकी सतह पर कदम रखने से इस तरह के निशान आसानी से पढ़ जाते हैं।
4. चांद पर यान के उतरने के निशान क्यों नहीं:
अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में भेजने और लैंड कराने के लिए स्पेस शटल से सतह पर गड्ढा बन जाता है। लेकिन चांद पर स्पेस शटल उतरने पर कोई गड्ढा क्यों नहीं बना?
नासा का कहना है कि उन्होंने स्पेस शटल इस तरीके से बनाए थे कि उतरने पर काफी कम जोर जमीन पर डालें। इसलिए स्पेस शटल के चांद पर उतरने से कोई गड्ढा नहीं बना।
5. एक से ज्यादा प्रकाश स्रोत का होना:
लोगों का कहना है कि नासा की दर्शाई हुई तस्वीरों में चीजों की छाया को देखकर पता चलता है कि वहां प्रकाश के एक से ज्यादा स्रोत है। जबकि हमारी सूर्यमाला में सिर्फ सूर्य ही एकमात्र प्रकाश का स्रोत है।
नासा का कहना है कि चांद की उतार-चढ़ाव वाली सतह की वजह से चीजों की छाया इस तरह दिखाई दे रही है।
6. इतने प्रकाश ने अंतरिक्ष यात्रियों को मार दिया होगा:
सबसे प्रसिद्ध अफवाह है कि पृथ्वी के चारों ओर प्रकाश की एक बेल्ट है जिससे अंतरिक्ष यात्री मर गए होंगे। इस बेल्ट को वैन ऐलन के नाम से जाना जाता है, जो हवा और पृथ्वी के चुंबकीय शक्ति को जोड़ने का काम करती है।
नासा के अनुसार अपोलो 11 ने वैन लैन में 2 घंटे से भी कम समय बिताया था जहां पर प्रकाश पहुँचता है वहां पर सिर्फ 5 मिनट का ही वक्त बिताया था।
7. अस्पष्टीकृत वस्तुएं:
जब नासा की फोटो दुनिया के सामने आई तो लोगो को उनमे एक अलग बात दिखाई दी। अंतरिक्ष यात्री के हस्बैंड में कुछ अलग चीज का प्रतिबिंब दिखाई देता है। ये प्रतिबिम्ब किसी वायर से लटकने वाली चीज़ का है।
ऐसी कोई चीज़ चाँद पर होने का सवाल ही नहीं है तो क्या हो सकती है ये चीज़? कुछ लोगो का मानना है कि ये स्पॉट लाइट है जो फिल्म स्टूडियो में होती है, जो अक्सर फिल्म स्टूडियो में ऊपर से लटकाई जाती है।
इसका जवाब आसान नहीं था, इसीलिए नासा ने फोटो पूर क्वालिटी की वजह से ऐसा दिखाई दे रहा है, यह कहकर यह बात टाल दी।
8. चांद पर चलने का तरीका:
चांद की ग्रेविटी हमारी पृथ्वी की ग्रेविटी से कम होती है। इसलिए वहां पर चलने पर उछलते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन लोगों का मानना है कि यह सीन फिल्म स्टूडियो में slow motion से बनाया गया है, अगर आप इस video को 2x speed चलाओगे तो यह धरती पर चलने जैसा होगा।
सच क्या है इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है, पर हां स्लो मोशन वाल्किंग से ऐसे उछाल वाले विडियो बनाये जा सकते है।
9. सी रॉक (C Rock)
इस फोटो पर भी काफी विवाद हुआ था, जिसमे C लैटर साफ़ दिखाई देता है। इसके आकार से आसानी से मालूम पड़ता है कि चाँद का नहीं है। लोग मानते है कि इस तरह कि मार्किंग film studio में पाई जाती है।
10. क्रॉसहेयर (Cross hair)
इस मिशन में चंद्रयान के समय फोटो लेने के लिए जिन कैमरों का इस्तेमाल किया था उनमे तस्वीर अच्छे से फोकस करने के लिए crosshair उपयोग होते थे। ये सभी तस्वीरों में है लेकिन कुछ क्रॉसहेयर फोटो में चीज़ों के पीछे दिखाई देते है।
इस वजह से कई लोग मानते है कि नासा ने चाँद के असली फोटोज के ऊपर चीज़ों को डालल कर नए फोटोज बनाये थे, जो ओरिजिनल जैसे लगते है।
इस अमेरिकी मिशन को ले कर लोगो कि अलग-अलग राय है, जो इसे नहीं मानते है उनके पास गिनाने के लिए कई वजह है, दूसरी ओर नासा के पास भी इसके पुख्ता सबूत हैं।
अपोलो 11 मिशन कि हकीकत और प्रूफ
नासा ने हाल ही में अपोलो लैंडिंग से जुड़ी कुछ तस्वीरें शेयर की है, जो इस बात को दर्शाती है कि चंद्रमा पर सच में लैंडिंग हुई थी। तस्वीरों के अलावा नासा की अपोलो लैंडिंग वेबसाइट भी है।
जिस पर आपको Apollo mission की पूरी जानकारी मिल जाएगी। आप अपोलो लैंडिंग का पूरा वीडियो देख सकते हैं। यह भी बताया गया है कि चंद्रमा पर उतरने वाले 6 लोगों द्वारा लगाए गए झंडे अभी भी खड़े हैं।
नासा की वेबसाइट पर दी गई जानकारियां ऊपर बताई गई अफवाहों को खारिज कर देती है और इस बात की पुष्टि करते हैं कि चंद्रमा पर सबसे पहला कदम नील आर्म स्ट्रांग न ही रखा था।
लेकिन अगर ऊपर बताई गई बातें सच है तो, इसकी हकीकत अब तभी पता चलेगी जब कोई व्यक्ति चांद पर उसी जगह पर जाए जहां पर अमेरिकी वैज्ञानिक उतरे थे।
लेकिन इतना आसान नहीं है, चंद्रमा कोई घर नहीं है जहां पर आसानी से उस जगह को ढूंढ लिया जाए जहां पर अमेरिकी यान उतरा था।
खैर जो भी हो, जैसे भी हो। भविष्य में इसका पता लग ही जाएगा और तब अमेरिका की हकीकत सामने आ जाएगी।
एक बात और भी है अगर चंद्रमा पर कदम रखने की बात झूठी है तो सोवियत संघ ने चांद पर आदमी भेजने का गुप्त अभियान क्यों चलाया था? दूसरी बात इस झूठे मिशन का विरोध क्यों नहीं किया?
जबकि उनके पास ऐसा करने की सोच और हिम्मत दोनों थी। लेकिन उन्होंने इसके खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा है। इससे समझा जा सकता है कि वाकई में नील आर्मस्ट्रांग चाँद पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति थे।
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